नारी सशक्तिकरण: नया विमर्श कद्र अब तक तेरी तारीख ने जानी ही नहीं, तुझ में शोले भी हैं बस अश्कफ़िशानी ही नहीं, तू …
राजेंद्र यादव होने का महत्व चंचल चौहान राजेंद्र यादव नहीं रहे। अभी अभी उनके पार्थिव शरीर को अग्नि को समर्पित करके दिल्ली के लेखकों का भारी हजूम…
फेसबुक किसी महानगर के उपनगर की तरह हैं। इसमें अट्टालिकाएँ हैं, मॉल, बार और मैट्रो के अलावा हर माडल की गाडिय़ाँ, टैक्सियाँ, मोटर साइकल, स्कूटर, ऑटो,…
राजेन्द्र यादव ने मुझे अपनी बात कहने की पूरी आज़ादी दी राजेन्द्र यादव नहीं रहे, सोचकर हैरानी होती है कि वे अब नहीं हैं। दो-चार दिनों पहले तक वो…
राजेंद्र यादव स्मृति सभा जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ, जन संस्कृति मंच, दलित साहित्य कला केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी के जा…
श्री राजेन्द्र यादव से जुडी बातों को "हिंदी भवन" सभागार में साझा करते हुए एस० आर० शर्मा
श्री राजेन्द्र यादव से जुडी बातों को "हिंदी भवन" सभागार में साझा करते हुए उनके परम मित्र श्री टी.एन. लालानी श्री राजेन्द्र यादव की य…
दुनिया की किसी भी भाषा के साहित्य की सामाजिक परिवर्तन में कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं होती । साहित्य हमेशा से सामाजिक परिवर्तन में अपनी अप्रत्यक्ष भूम…
मैंने अपना मोबाइल उठाया है, राजेंद्र जी और फोनबुक में आपके नाम तक पहुंची हूं। वह चमक रहा है, लग रहा है अभी उस नंबर से घंटी बजेगी और आप बोल पड़ेंगे। …
श्री राजेन्द्र यादव से जुडी बातों को "हिंदी भवन" सभागार में साझा करते हुए कथाकार संजीव .
परिचय को रोमांचक कर गए। प्रश्नो को मुक्त करने वाले, तुम सोए नहीं अब जागे हो। रूढ़ीवादिता के छज्जे तले, घुटती सांसो को खुला आसमान देने वाले। द…
एक युग का अंत ''डॉ राजेन्द्र यादव का साहित्यिक परिवेश से अचानक चले जाना-एक युग के अंत जैसा है, इस अभाव की पूर्ति नहीं जा सकती''…
राजेन्द्र यादव और ओम थानवी Rajendra Yadav and Om Thanvi
डियर फ़ादर आदरणीय राहुल जी, भोत गल्त बात है । इतनी गल्त बात है कि लंबी चिट्टी का मूड नहीं बन रहा । नागपुर से लौटते वक्त कल हवाई जहाज़ में टा…
किसी के जाने से समय रुकता नहीं, साहित्य भी समय सा ही गतिमान, समय सा निष्ठुर कहाँ किसी के आने जाने से विचलित हुआ है, किंतु राजेन्द्र यादव का आना और अ…
लगभग 7-8 साल पहले प्रेस क्लब जयपुर में उन्हें सुना, उनकी बातें जेहन में आज भी है, उतर गईं थीं दिल तक । राजेन्द्र यादव जी ने कहा था - " …
कितनी कमज़ोर थी हमारी तैयारी, और आगे और भी कमज़ोर है अशोक गुप्ता दुनिया में मौत से बड़ा सच और कोई नहीं है. अगर अकाल मृत्यु की बात छोड़ दें, तो उम्…
'पाखी' के राजेंद्र यादव पर केंद्रित सितंबर-2011 अंक के संपादकीय का किंचित संशोधित प्रारूप। 29 अक्टूबर 2013 को राजेंद्र यादव के देहावसान पर …
को-पायलट* गुलज़ार बहुत कम लोग थे फ्लाइट में, और वो था उस आधी रात की फ्लाइट में कम ही लोग होते हैं अँधेरे में चले थे हम, मगर कुछ देर मे…