फिज़ा में फैज़ कथाकार प्रेम भारद्वाज (संपादक पाखी) आपमें से किसी ने सुनी है पचहत्तर साल के बूढ़े और तीस साल की जवान लड़की की कहानी। न…
आलोचनात्मक ढंग से चर्चा में आयी अनुराग कश्यप की दो भागों में पूरी हुई फिल्म गैंग ऑफ वासेपुर से एक बार फिर हिन्दी सिनेमा में सिने-भाषा को लेकर ब…
अरविन्द कुमार 'साहू' खत्री मोहल्ला, ऊंचाहार राय बरेली - 229404 फाल्गुनी मुक्तक (1) कहीं अपना सा लगे ,कहीं पराया फागुन । आम के बौ…
पहला भाग दूसरा भाग वो स्टेशन पर उतरते ही ऐसे उठा ली गई जैसे कोई फुटपाथ पर पड़ा सिक्का उठा ले! ट्रेन रुकी ही थी कि एक आदमी ने …
हैदराबाद में बीते गुरुवार को हुए धमाकों पर स्वाभाविक ही विपक्ष ने सरकार को आड़े हाथों लिया और संसद के दोनों सदनों में खुफिया तंत्र की नाकामी प…
एक नाम से बढ़कर जीवन अनुभव होता है एक ही नाम तो कितनों के होते हैं नाम की सार्थकता सकारात्मक जीवन के मनोबल से होती है हवाओं का रूख जो बदले सार्…
24 फरवरी, 2013, नयी दिल्ली - विनोद पाराशर सिरीफोर्ट आडिटोरियम के नजदीक वरिष्ठ चित्रकार अर्पणा कौर की ’ एकेडमी आफ फाइन आर्ट एण्ड लिटरेचर…
शिशु और शव का मिटता फर्क दोस्तोएवस्की ने कहा था कि अगली शताब्दी में नैतिकता जैसी कोई चीज नहीं होगी। गुलजार के सिनेमाई गीतों पर आधारित पुस्…
१५ फरवरी, कोलकाता ‘निराला’, ‘सुकुल’ जयन्ती का आयोजन कोलकाता की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था बंगीय हिन्दी परिषद् में वाणी के प्राकट्य दिवस…