कलात्मक संस्मरणनामा , मक़बूल फ़िदा हुसैन साहब से अपने संबंध की लम्बी यात्रा को विनोद भारद्वाज जी ने हुसैन की यादों में पूरी तरह डूबकर…
शब्दांकन फेसबुक लाइव: बेगम समरू का सच #शब्दांकन_फेसबुक_लाइव: रवीन्द्र त्रिपाठी के साथ एक पुस्तक पर 5 मिनट | बेगम समरू का सच रवीन्द…
योगिता यादव के सामयिक प्रकाशन से छपे उपन्यास ' ख्वाहिशों के खांडववन ' की समीक्षा करते हुए उर्मिला शुक्ल लिखती हैं: योगिता यादव …
शब्दांकन फेसबुक लाइव: रवीन्द्र त्रिपाठी के साथ एक पुस्तक पर 5 मिनट गीतकार शैलेन्द्र पर इंद्रजीत सिंह की एक पुस्तक "तू प्यार का साग…
सच वाला बेमिसाल संस्मरण । कल के संस्मरणनामा में विनोद जी ने जब लिखा कि, 'ये मेरी कोविद लॉकडाउन डायरी की विदाई किस्त है, कुछ और ल…
विनोद भारद्वाजजी के संस्मरणनामा उनकी तरह ही बेबाक हैं. इस बार वाले, श्रीलाल शुक्ल की यादें में वह लिखते हैं अब आगे और नहीं... शायद कुछ लोग…
कुँवर नारायण के उस घर में अमीर खान, जसराज, कारंत, संयुक्ता पाणिग्रही , अज्ञेय , अलकाजी जैसे कई नाम कुँवर नारायण के ख़ास मेहमान बन कर …
विनोद भारद्वाज जी अपने बहुचर्चित स्तंभ 'संस्मरणनामा' में इस दफ़ा केदारनाथ सिंह जी की यादें हम सब से साझा कर रहे हैं...
हिंदी साहित्य को धकियाती क्षेत्रीय, जातीय, नस्ली, स्त्री बनाम पुरुष, कविता कि कहानी तिस पर लेखन बनाम फेसबुक राजनीति से परे भी हैं कुछ लोग…
अचला बंसल अंग्रेज़ी साहित्य की सम्मानित भारतीय लेखक हैं. अंग्रेज़ी के साथ-साथ वह यदाकदा हिंदी कहानियाँ भी लिखती रही हैं. "चौथा कौन?"…
अनामिका के नए उपन्यास आईनासाज़ की इस समीक्षा में सुनीता गुप्ता लिखती हैं कि "अनामिका के यहां प्रतिरोध की वह मुखर प्रतिध्वनि नहीं मिलती जो स्त…
'बुकमार्क्स' कहानी पढ़िए । शालू 'अनंत' दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए करने के बाद अब 'हाशियावाद' पर पीएचडी कर रही हैं …
कहानियों की भीड़भाड़ और धक्कामुक्की के बीच हम उन कहानियों को न भूल जाएँ जो कथा के मूल-सी हैं । ऐसी ही एक कहानी है शिवप्रसाद सिंह की ' दादी…
संपादक, कहानीकार अशोक मिश्र की कहानी 'बुद्धिराम @ पत्रकारिता डॉट कॉम' 2011 में परिकथा के युवा लेखन विशेषांक में प्रकाशित हुई थी. प…
नक्सलवाद की समस्या लिखते एवं समाधान तलाशते अमरेंद्र किशोर की आगामी पुस्तक "ये माताएं अनब्याही हैं" के हर अंश को आप कम से कम पढ़ते ज़…
युवा शायर अभिषेक कुमार अम्बर पाँच ग़ज़लों का आनंद उठाइए. मुझको रोज़ाना नए ख़्वाब दिखाने वाले। बेवफ़ा कहते हैं तुझको ये …
फ़िलहाल, 'दिनमान की यादें' की आखिरी कड़ी में दिनमान की बातें लिखते हुए विनोद भारद्वाज जी कहते हैं "अज्ञेय और रघुवीर सहाय ने ज…
विनोद भारद्वाजजी के इस 'दिनमान की यादें' संस्मरणनामा को हिंदी साहित्य की दुनिया में ख़ूब पसंद किया जा रहा है. लॉकडाउन संसार में उन…
अमरेंद्र किशोर , वरिष्ठ पत्रकार की हर रिपोर्ट वह ज़रूरी कागज़ है जिसे देखा जाना चाहिए. इन कागज़ों को देखते हुए नक्सलवाद समस्या को न सिर्फ़ समझा…
कवि, उपन्यासकार और कला समीक्षक विनोद भारद्वाज जी को आप शब्दांकन पर पहले भी पढ़ते रहे है. विनोदजी के पास श्रेष्ठ यादों के कई दबे हुए खजाने है…